हम देख के तुम से रुख़-ए-आराम मियाँ
ख़ुश रहते हैं दिल में सहर ओ शाम मियाँ
दीवाने तुम्हारे जब अदा के ठहरे
फिर हुस्न-ए-परी से हमें क्या काम मियाँ
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आन रखता है अजब यार का लड़ कर चलना
रखती है जो ख़ुश चाह तुम्हारी हम को
कभी तो आओ हमारे भी जान कोठे पर
सहर जो निकला मैं अपने घर से तो देखा इक शोख़ हुस्न वाला
मय भी है मीना भी है साग़र भी है साक़ी नहीं
ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल
हो के मह वो तो किसी और का हाला निकला
मिला मुझ से वो आज चंचल छबीला
बहार
मुझे इस झमक से आया नज़र इक निगार-ए-रा'ना
मुखड़े को जो उस के हम ने जा कर देखा
अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यां