आन रखता है अजब यार का लड़ कर चलना
आन रखता है अजब यार का लड़ कर चलना
हर क़दम नाज़ के ग़ुस्से में अकड़ कर चलना
जितने बन बन के निकलते हैं सनम नाम-ए-ख़ुदा
सब में भाता है मुझे उस का बिगड़ कर चलना
ना-तवानी का भला हो जो हुआ मुझ को नसीब
उस की दीवार की ईंटों को रगड़ कर चलना
उस की काकुल है बुरी मान कहा ऐ अफ़ई
देखियो उस से तू कांधा न रगड़ कर चलना
चलते चलते न ख़लिश कर फ़लक-ए-दूँ से 'नज़ीर'
फ़ाएदा क्या है कमीने से झगड़ कर चलना
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