नासेह न सुना सुख़न मुझे जिस-तिस के
जो तू ने कहा ये आवे जी में किस के
क्यूँ-कर न मिलूँ भला जी में उस से आह
दिल रह न सके बग़ैर देखे जिस के
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कूचे में उस के बैठना हुस्न को उस के देखना
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर
ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
सहर जो निकला मैं अपने घर से तो देखा इक शोख़ हुस्न वाला
निगह के सामने उस का जूँही जमाल हुआ
पैसा
कल 'नज़ीर' उस ने जो पूछा ब-ज़बान-ए-पंजाब
हैं दम के साथ इशरत ओ उसरत हज़ार-हा
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
ये हुस्न है आह या क़यामत कि इक भभूका भभक रहा है
साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़