मज़मून-ए-सर्द-मेहरी-ए-जानाँ रक़म करूँ
गर हाथ आए काग़ज़-ए-कश्मीर का वरक़
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देख उसे रंग-ए-बहार ओ सर्व ओ गुल और जूएबार
सर-चश्मा-ए-बक़ा से हरगिज़ न आब लाओ
कमाल-ए-इश्क़ भी ख़ाली नहीं तमन्ना से
साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़
हुई शक्ल अपनी ये हम-नशीं जो सनम को हम से हिजाब है
क्या कासा-ए-मय लीजिए इस बज़्म में ऐ हम-नशीं
नासेह न सुना सुख़न मुझे जिस-तिस के
जो तुम ने पूछा तो हर्फ़-ए-उल्फ़त बर आया साहिब हमारे लब से
इधर यार जब मेहरबानी करेगा
यूँ तो हम कुछ न थे पर मिस्ल-ए-अनार-ओ-महताब
यक-ब-यक होगी सियाही इस क़दर जाती रही
नहीं याँ बैठते जो एक दम तुम