अबस मेहनत है कुछ हासिल नहीं पत्थर-तराशी से
यही मज़मून था फ़रहाद के तेशे की खट-खट का
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हँसे रोए फिरे रुस्वा हुए जागे बंधे छूटे
देख कर कुर्ते गले में सब्ज़ धानी आप की
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
ये जवाहिर-ख़ाना-ए-दुनिया जो है बा-आब-ओ-ताब
सुनो मैं ख़ूँ को अपने साथ ले आया हूँ और बाक़ी
आरज़ू ख़ूब है मौक़ा से अगर हो वर्ना
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
दिल हम ने जो चश्म-ए-बुत-ए-बेबाक से बाँधा
तिरी क़ुदरत की क़ुदरत कौन पा सकता है क्या क़ुदरत
जहाँ है क़द उस का जल्वा-फ़रमा तो सर्व वाँ किस हिसाब में है
ये जो उठती कोंपल है जब अपना बर्ग निकालेगी
रुख़ परी चश्म परी ज़ुल्फ़ परी आन परी