किसी की मेहरबानी से मोहब्बत मुतमइन क्या हो
मोहब्बत तो मोहब्बत से भी आसूदा नहीं होती
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और ही वो लोग हैं जिन को है यज़्दाँ की तलाश
रात से शिकायत क्या बस तुम्हीं से कहना है
चश्म-ए-नम कुछ भी नहीं और शेर-ए-तर कुछ भी नहीं
ख़ुद-फ़रेबी ने बे-शक सहारा दिया और तबीअ'त ब-ज़ाहिर बहलती रही
जिन के गुनाह मेरी नज़र से निहाँ नहीं
अभी से वो दामन छुड़ाने लगे हो
बदल गई है कुछ ऐसी हवा ज़माने की
ये जो इंसाँ ख़ुदा का है शहकार
हर शख़्स बन गया है ख़ुदा तेरे शहर में
हवस की आग बुझी दिल की तिश्नगी है वही
हालात अब तो इतने दुश्वार हो गए हैं