पसीना मेरी मेहनत का मिरे माथे पे रौशन था
चमक लाल-ओ-जवाहर की मिरी ठोकर पे रक्खी थी
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(371) Peoples Rate This
शाख़ पे चिड़िया गाती है
मक़्तल से मेरा कासा-ए-सर कौन ले गया
फ़सील-ए-जाँ पे रक्खी थी न बाम-ओ-दर पे रक्खी थी
फ़ज़ा-ए-तीरा-शबी का हिसाब करना है
कर लिया महफ़ूज़ ख़ुद को राएगाँ होते हुए
मंज़िल के दूर दूर तक आसार तक भी नहीं
सवाद-ए-शाम-ए-ग़म में यूँ तो देर तक जला चराग़
तलातुम-ख़ेज़ मंज़र हो गई हैं
घर से अब बाहर निकलने में भी घबराते हैं हम