मारो पत्थर भी तो नहीं हिलता
जम चुका है अब इस क़दर पानी
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नैन तो बार बार भर जाएँ
मिरी प्यास का तराना यूँ समझ न आ सकेगा
मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग
''हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई''
बहुत सोचा किए क्या ज़िंदगी है
क्या करिश्मा था ख़ुदाया देर तक
तुम से जाना कि इक किताब हूँ मैं
सपन कितना सलोना चाहती थी
कैसे होती है शब की सहर देखते
जाने अब खो गया किधर पानी
कल तिरे एहसास की बारिश तले