कल तिरे एहसास की बारिश तले
मेरा सूना-पन नहाया देर तक
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हसरत-ए-मौसम-ए-गुलाब हूँ मैं
कैसे होती है शब की सहर देखते
मिरी प्यास का तराना यूँ समझ न आ सकेगा
''हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई''
कोई मो'जिज़ा हुआ है मिरी बे-ख़ुदी से आगे
तुम से जाना कि इक किताब हूँ मैं
फिर तिरा इंतिज़ार देखेंगे
उसी की रौशनी रहती है इस क़दर मुझ में
ज़ख़्म भी अब हसीन लगते हैं
फिर तिरे रेशमी लब मुझ को मनाने आए
मारो पत्थर भी तो नहीं हिलता