ज़ख़्म भी अब हसीन लगते हैं
तेरे हाथों फ़रेब खाने पर
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नैन तो बार बार भर जाएँ
मारो पत्थर भी तो नहीं हिलता
कल तिरे एहसास की बारिश तले
उसी की रौशनी रहती है इस क़दर मुझ में
कैसे होती है शब की सहर देखते
''हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई''
मिरी प्यास का तराना यूँ समझ न आ सकेगा
मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग
सपन कितना सलोना चाहती थी
फिर तिरा इंतिज़ार देखेंगे
बहुत सोचा किए क्या ज़िंदगी है
इक फ़क़त उस के रूठ जाने पर