तिरे वजूद को छू ले तो फिर मुकम्मल हो
भटक रही है ख़ुशी कब से दर-ब-दर मुझ में
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(466) Peoples Rate This
नैन तो बार बार भर जाएँ
हसरत-ए-मौसम-ए-गुलाब हूँ मैं
ज़ख़्म भी अब हसीन लगते हैं
उसी की रौशनी रहती है इस क़दर मुझ में
जाने अब खो गया किधर पानी
फिर तिरा इंतिज़ार देखेंगे
कल तिरे एहसास की बारिश तले
मारो पत्थर भी तो नहीं हिलता
कैसे होती है शब की सहर देखते
बहुत सोचा किए क्या ज़िंदगी है
मुख़्तलिफ़ हैं मिरी बहार के रंग