लब-ए-गुल की हँसी देगी न तुम को रौशनी अपनी

लब-ए-गुल की हँसी देगी न तुम को रौशनी अपनी

ज़रा शबनम के अश्कों में भी देखूँ ज़िंदगी अपनी

हमें क्या ग़म कि हम इक ज़मज़मा-पर्दाज़-ए-गुलशन थे

बहारों को हुई महसूस गुलशन में कमी अपनी

मुझे महफ़िल की नज़रों से नज़र आता है महफ़िल में

गवारा ख़ातिर-ए-रंगीं को है सादा-दिली अपनी

मिरे दिल की तरफ़ इक बार भेजी थी किरन उस ने

भुला दी चाँद ने उस रात से ताबिंदगी अपनी

जो रहबर कारवाँ को मंज़िलों के नाम पर लूटे

बता ऐ हम-सफ़र अच्छी नहीं क्या गुमरही अपनी

ये सब जाम-ओ-सुबू ख़ाली सवेरा तिश्ना-कामी का

कि अब कल के लिए रहने दे कुछ साक़ी-गरी अपनी

शराब ओ शाहिद ओ शहद-ए-तरन्नुम नश्शा-ए-इशरत

इन्ही में परवरिश पाती रही है तिश्नगी अपनी

निगह गुस्ताख़ तेवर तुंद कौन आया सर-ए-महफ़िल

'नियाज़' आते ही तेरे फ़िक्र सब को हो गई अपनी

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In Hindi By Famous Poet Niyaz Haidar. is written by Niyaz Haidar. Complete Poem in Hindi by Niyaz Haidar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.