जिस के हुस्न की शोहरत मुझ पे बार गुज़री थी
जिस के हुस्न की शोहरत मुझ पे बार गुज़री थी
आज फिर वही लड़की राह रोके ठहरी थी
वहम की निगाहों ने कितने हादसे देखे
ख़त्त-ए-पेश-ए-मंज़र पर एक काली बिल्ली थी
साँप सूँघ जाता था जो उसे बरतता था
देखने में वो औरत शहद की कटोरी थी
रूह में उभरती थी तेरे क़ुर्ब की ख़्वाहिश
मैं ने अपने होंटों पे तेरी प्यास देखी थी
हिद्दतों की बारिश में सूखती थीं शिरयानें
छाँव की तलब मेरे सेहन-ए-दिल में उगती थी
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