प्यार का अब्र खुल के बरसा है
टूट कर मैं ने तुझ को चाहा है
इस से बढ़ कर जुदाई क्या होगी
अब तो आँखों से ख़ून बहता है
शायद अब फिर कभी न मिल पाएँ
मैं ने ख़्वाबों में तुझ को देखा है
इक किरन को तरस रहे हैं हम
सेहन-ए-दिल में बड़ा अंधेरा है
सब को फूलों की आरज़ू है 'नियाज़'
कौन पत्तों से प्यार करता है