नज़र मत बुल-हवस पर कर अरे चंचल सँभाल अँखियाँ

नज़र मत बुल-हवस पर कर अरे चंचल सँभाल अँखियाँ

कि उस बद-फ़े'ल सूँ खीचेंगी आख़िर इंफ़िआल अँखियाँ

जुदाई से होवे मफ़रूर जाँ क़ालिब के सूबा सूँ

अपस दीदार सूँ करती हैं फिर उस कूँ बहाल अँखियाँ

निगाह-ए-गर्म गुल-रू सीं हुआ रौशन यू माली पर

कि अब सूरज नमन नर्गिस पे लादेंगी ज़वाल अँखियाँ

हुआ मा'लूम बद-काराँ तरफ़ नित सीन करने सूँ

कि रजवारे में बस्ती हैं सिरीजन की जुह्हाल अँखियाँ

जहाँ के रावताँ सूँ ग़म्ज़ा के नेज़ा कूँ चमका कर

नज़र-बाज़ी के मैदाँ बीच करती हैं क़िताल अँखियाँ

मुरव्वत का असर दस्ता नहीं उस शोख़ चितवन में

मगर रखती हैं आशिक़ सूँ अपस दिल में मलाल अँखियाँ

सियह-चश्मी हुई ज़ाहिर ललन की चश्म-पोशी में

छुपाती हैं अपस मुश्ताक़ सूँ अपना जमाल अँखियाँ

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In Hindi By Famous Poet Obaidullah Khan Mubtala. is written by Obaidullah Khan Mubtala. Complete Poem in Hindi by Obaidullah Khan Mubtala. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.