वक़्त ने सब भुला दिया 'परतव'
इश्क़ क्या शय है आशिक़ी क्या है
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तफ़ावुत-ए-राह
इस दश्त-ए-हलाकत से गुज़र कौन करेगा
अपने मरकज़ पे न पूरा हुआ चक्कर मेरा
अबदी मसअला
उस गर्मी-ए-बाज़ार से बढ़ कर नहीं कुछ भी
हिकायत-ए-शब
हिर्स-ए-माल-ओ-मनाल में खोया
मैं जो सहरा में किसी पेड़ का साया होता
वो न पहचाने ये ख़दशा सा लगता रहता है