ज़मीं को ऐ ख़ुदा वो ज़लज़ला दे
निशाँ तक सरहदों के जो मिटा दे
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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एक न इक दीवार सरकती रहती है
फलदार था तो गाँव उसे पूजता रहा
मैं रेत का महल हूँ मिरे पासबाँ दरख़्त
मौसम सूखे पेड़ गिराने वाला था
सीने पर रख हिजरत का पत्थर चुप-चाप
सावन में घबरा जाता है
सफ़र में धूप है तो साएबान भी होगा
हवेलियाँ भी हैं कारें भी कार-ख़ाने भी
तू जब घर से चला जाता है
कोई ख़ुशबू न फूल हूँ मैं तो
समुंदर आँख से ओझल ज़रा नहीं होता
बर्फ़ से लड़ता था मेरे पास पानी क्यूँ नहीं