जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तिरे अक्स को तकते तकते
मैं ने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिए आहिस्ता से!
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रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
कुछ ख़बर लाई तो है बाद-ए-बहारी उस की
अश्क आँख में फिर अटक रहा है
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर उस का
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
शुगून