मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
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कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी
उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
मसअला
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
अब्र बरसे तो इनायत उस की