कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
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निक-नेम
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
बहुत रोया वो हम को याद कर के
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम