कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
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पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
दुख नविश्ता है तो आँधी को लिखा आहिस्ता
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई