उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
जी नहीं ये मानता वो बेवफ़ा पहले से था
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1007) Peoples Rate This
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
यूँ देखना उस को कि कोई और न देखे
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
रात के शायद एक बजे हैं
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
जला दिया शजर-ए-जाँ कि सब्ज़-बख़्त न था
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार