उस ने जलती हुई पेशानी पे जब हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
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जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
सिर्फ़ एक लड़की
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
जब साज़ की लय बदल गई थी
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
नए साल की पहली नज़्म
खुली आँखों में सपना झाँकता है
बहुत रोया वो हम को याद कर के
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतीं
बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर