काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई
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बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
मशवरा
अब इतनी सादगी लाएँ कहाँ से
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
मुझे मत बताना
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही