ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
मैं भीड़ में गुम हो गई तन्हाई के डर से
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कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
मशवरा
वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
इल्ज़ाम था दिए पे न तक़्सीर रात की
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
नए साल की पहली नज़्म
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला