किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
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बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
वो मजबूरी नहीं थी ये अदाकारी नहीं है
हारने में इक अना की बात थी
ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
वो हम नहीं जिन्हें सहना ये जब्र आ जाता