ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
ख़ामुशी भी तो हुई पुश्त-पनाही की तरह
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(4331) Peoples Rate This
मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
क़र्या-ए-जाँ में कोई फूल खिलाने आए
ए'तिराफ़
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था
रफ़ाक़तों के नए ख़्वाब ख़ुशनुमा हैं मगर
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की