सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
ज़िक्र हो न उस का भी कल को ना-रसाओं में
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चाँद रात
तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है