सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी
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पज़ीराई
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
एक दोस्त के नाम
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा