बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन
वो जानता था कि है एहतिमाम किस के लिए
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जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
फ़बेअय्ये आलाए रब्बिकमा तुकज़्ज़िबान
जुदाई की पहली रात
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
डसने लगे हैं ख़्वाब मगर किस से बोलिए
शब वही लेकिन सितारा और है
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो
शाम आई तिरी यादों के सितारे निकले
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई