गुलाबी पाँव मिरे चम्पई बनाने को
किसी ने सहन में मेहंदी की बाड़ उगाई हो
Faiz Ahmad Faiz
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कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
बुलावा
हवा महक उठी रंग-ए-चमन बदलने लगा
लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
वाहिमा
बाब-ए-हैरत से मुझे इज़्न-ए-सफ़र होने को है
मसअला जब भी चराग़ों का उठा
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया