ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी
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एक्सटेसी
ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
घर आप ही जगमगा उठेगा
जिज़्या
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में