मैं उस की दस्तरस में हूँ मगर वो
मुझे मेरी रज़ा से माँगता है
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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
राय पहले से बना ली तू ने
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
बारहा तेरा इंतिज़ार किया
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
ताज-महल
हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है