वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
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अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
नए साल की पहली नज़्म
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर
चराग़-ए-राह बुझा क्या कि रहनुमा भी गया
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
एक मंज़र