वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
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नए साल की पहली नज़्म
ए'तिराफ़
शब वही लेकिन सितारा और है
उस ने मुझे दर-अस्ल कभी चाहा ही नहीं था
रुकने का समय गुज़र गया है
यूँ देखना उस को कि कोई और न देखे
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है
ज़िंदगी बे-साएबाँ बे-घर कहीं ऐसी न थी
कुछ तो तिरे मौसम ही मुझे रास कम आए
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
ख़्वाब