जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(659) Peoples Rate This
जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर उस का
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
एक मंज़र
ग़ैर मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार