जिस जा मकीन बनने के देखे थे मैं ने ख़्वाब
उस घर में एक शाम की मेहमान भी न थी
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गए जनम की सदा
अोथेलो
सिर्फ़ एक लड़की
खुलेगी उस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
समुंदरों के उधर से कोई सदा आई
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
जगा सके न तिरे लब लकीर ऐसी थी
निक-नेम