अपने फ़ोन पे अपना नंबर
बार बार डायल करती हूँ
सोच रही हूँ
कब तक उस का टेलीफ़ोन इंगेज रहेगा
दिल कुढ़ता है
इतनी इतनी देर तलक
वो किस से बातें करता है!
Anwar Masood
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रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
वाहिमा
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
तेरी ख़ुश्बू का पता करती है
ख़्वाब
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
पूरा दुख और आधा चाँद
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें
पज़ीराई