जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
Mir Taqi Mir
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अश्क आँख में फिर अटक रहा है
हम ने ही लौटने का इरादा नहीं किया
सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में
गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
सिर्फ़ एक लड़की
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
एक्सटेसी
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
बहुत से लोग थे मेहमान मेरे घर लेकिन