पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है
फैलता जाता है फिर आँख के काजल की तरह
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ज़िद
ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
हाथ मेरे भूल बैठे दस्तकें देने का फ़न
जुदाई की पहली रात
तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
ताज़ा मोहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है
बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
थक गया है दिल-ए-वहशी मिरा फ़रियाद से भी