पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
दस्त-बस्ता शहर में खोले मिरी ज़ंजीर कौन
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ए'तिराफ़
मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
ज़िंदगी मेरी थी लेकिन अब तो
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ बर्ग-ओ-बार का मौसम
लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
चाँद रात
बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
मैं फ़क़त चलती रही मंज़िल को सर उस ने किया
सभी गुनाह धुल गए सज़ा ही और हो गई