यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ कर दोबारा देखना
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अब भला छोड़ के घर क्या करते
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
ए'तिराफ़
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
गए जनम की सदा
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
सिर्फ़ इस तकब्बुर में उस ने मुझ को जीता था
हर्फ़-ए-ताज़ा नई ख़ुशबू में लिखा चाहता है
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
रस्ते में मिल गया तो शरीक-ए-सफ़र न जान
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में