मैं क्यूँ उस को फ़ोन करूँ!
उस के भी तो इल्म में होगा
कल शब
मौसम की पहली बारिश थी!
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ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर उस का
अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें
रुख़्सत करने के आदाब निभाने ही थे
गए मौसम में जो खिलते थे गुलाबों की तरह
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
नहीं मेरा आँचल मैला है
दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है
गवाही कैसे टूटती मुआ'मला ख़ुदा का था