तुझे मनाऊँ कि अपनी अना की बात सुनूँ
उलझ रहा है मिरे फ़ैसलों का रेशम फिर
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वाहिमा
तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
तेरे तोहफ़े तो सब अच्छे हैं मगर मौज-ए-बहार
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
मसअला
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
इसी में ख़ुश हूँ मिरा दुख कोई तो सहता है