कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
तेरा मे'यार बदलता है निसाबों की तरह
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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
मेरी चादर तो छिनी थी शाम की तन्हाई में
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
ये क्या कि वो जब चाहे मुझे छीन ले मुझ से
जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
हवा-ए-ताज़ा में फिर जिस्म ओ जाँ बसाने का
एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है
इक नाम क्या लिखा तिरा साहिल की रेत पर