जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे
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रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
राय पहले से बना ली तू ने
बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
पा-ब-गिल सब हैं रिहाई की करे तदबीर कौन
उस के यूँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब होगा कोई
शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
गए जनम की सदा
कभी कभार उसे देख लें कहीं मिल लें