शब की तन्हाई में अब तो अक्सर
गुफ़्तुगू तुझ से रहा करती है
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एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
नम हैं पलकें तिरी ऐ मौज-ए-हवा रात के साथ
क़ैद में गुज़रेगी जो उम्र बड़े काम की थी
क्या करे मेरी मसीहाई भी करने वाला
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
गुलाब हाथ में हो आँख में सितारा हो
काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में