मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
शेर कहती हुई आँखें उस की
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रंग ख़ुश-बू में अगर हल हो जाए
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप सात रंगों में फैलती है आँखों पर
मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
जब साज़ की लय बदल गई थी
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
ग़ैर-मुमकिन है तिरे घर के गुलाबों का शुमार
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं