चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया
Rahat Indori
Gulzar
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अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
खुली आँखों में सपना झाँकता है
पज़ीराई
जिज़्या
ताज-महल
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है
यही वो दिन थे जब इक दूसरे को पाया था
बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की
सिर्फ़ एक लड़की