अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(518) Peoples Rate This
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत किसे थी
इक हुनर था कमाल था क्या था
नहीं नहीं ये ख़बर दुश्मनों ने दी होगी
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
निक-नेम
अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा
पज़ीराई
एक्सटेसी